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Vagyanik Chetna Ke Vaahak: Chandra Shekhar Venkatraman (Questions & Answers)

 वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चन्द्र शेखर वेंकट रामन

प्रश्नोत्तर

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1-रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा और क्या थे?

उत्तर-रामन् भावुक प्रकृति प्रेमी के अलावा एक जिज्ञासु वैज्ञानिक थे।

प्रश्न 2-समुद्र को देखकर रामन् के मन में कौन-सी जिज्ञासाएँ उठीं?

उत्तर-समुद्र को देखकर रामन् के मन में दो जिज्ञासाएँ उठीं-

1-समुद्र का रंग नीला क्यों होता है?

2-समुद्र का रंग कुछ और क्यों नहीं होता?

प्रश्न 3-रामन् के पिता ने उनमें किन विषयों की सशक्त नींव डाली?

उत्तर-रामन् के पिता ने उनमें गणित और भौतिकी-इन दो विषयों की सशक्त नींव डाली।

प्रश्न 4-वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के अध्ययन के द्वारा रामन् क्या करना चाहते थे?

उत्तर-भारतीय वाद्ययंत्रों के बारे में पश्चिमी देशों को यह भ्रांति थी कि विदेशी वाद्ययंत्रों की तुलना में भारतीय वाद्ययंत्र घटिया होते हैं। रामन ने अपने अध्ययन के द्वारा इस अवधारणा को तोड़ने का प्रयत्न किया और यह साबित किया कि भारतीय वाद्ययंत्र किसी भी प्रकार से विदेशी वाद्यों से कम नहीं हैं।

प्रश्न 5-सरकारी नौकरी छोड़ने के पीछे रामन् की क्या भावना थी?

उत्तर-रामन् भारत सरकार के वित्त विभाग में एक प्रतिष्ठित पद पर कार्यरत थे। पर उस सरकारी नौकरी में उनके पढ़ने-पढ़ाने के लिए कोई स्थान न था, जबकि विश्वविद्यालय की नई नौकरी में वे अध्ययन, अध्यापन तथा शोध कार्यों को पर्याप्त समय दे सकते थे। वैसे भी रामन् के लिए धन एवं पद से अधिक महत्त्वपूर्ण सरस्वती की साधना थी। अतः उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ने का निर्णय ले लिया।

प्रश्न 6-‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे कौन-सा सवाल हिलोरें ले रहा था?

उत्तर-‘रामन् प्रभाव’ की खोज के पीछे यह सवाल हिलोरें ले रहा था कि ‘समुद्र के नीले रंग की वज़ह क्या है?’ 

प्रश्न 7-प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने क्या बताया?

उत्तर-प्रकाश तरंगों के बारे में आइंस्टाइन ने बताया कि प्रकाश अति सूक्ष्म कणों की तीव्र धारा के समान है। इन अति सूक्ष्म कणों की तुलना आइंस्टाइन ने ‘बुलेट’ से की और इन्हें ‘फोटॉन’ नाम दिया।

प्रश्न 8-रामन् की खोज ने किन अध्ययनों को सहज बनाया?

उत्तर-रामन् की खोज ने अणुओं और परमाणुओं की आंतरिक संरचना के अध्ययन को सहज बनाया। उनकी खोज के कारण पदार्थों का संश्लेषण प्रयोगशाला में करना तथा अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो पाया।


लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1-कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा क्या थी?

उत्तर-कॉलेज के दिनों में रामन् की दिली इच्छा यह थी कि वे अपना संपूर्ण जीवन शोध कार्यों में ही व्यतीत कर दें। अर्थात् वे विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए शोध और अनुसंधान करना चाहते थे। 

प्रश्न 2-वाद्ययंत्रों पर की गई खोजों से रामन् ने कौन-सी भ्रांति तोड़ने की कोशिश की?

उत्तर-रामन् की खोज से पहले यह भ्रांति फैली हुई थी कि विदेशी वाद्यों की तुलना में भारतीय वाद्य यंत्र घटिया हैं। परंतु रामन् ने अनेक देशी-विदेशी वाद्यों के अध्ययन द्वारा इस भ्रांति को तोड़ा और यह सिद्ध किया कि भारतीय वाद्ययंत्र विदेशी वाद्यों की तुलना में किसी भी प्रकार घटिया नहीं हैं।

प्रश्न 3-रामन् के लिए नौकरी संबंधी कौन-सा निर्णय कठिन था।

उत्तर-रामन् भारत सरकार के वित्त विभाग में अफसर के पद पर नियुक्त थे। यह एक प्रतिष्ठित नौकरी थी, जिसमें उन्हें आकर्षक वेतन तथा अनेक सुख-सुविधाएँ प्राप्त थीं। जब उनके पास कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफ़ेसर पद का प्रस्ताव आया, जिसमें सुख-सुविधाएँ तथा वेतन दोनों ही कम थे, तो उनके लिए यह निर्णय करना कठिन हो गया कि वे सरकारी नौकरी पर ही बने रहें या उसे छोड़कर कम वेतन वाली प्रोफ़ेसर की नौकरी को अपनाएँ। 

प्रश्न 4-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर किन-किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया?

उत्तर-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् को समय-समय पर अनेकानेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे-

1-1924 में उन्हें रॉयल सोसाइटी की सदस्यता से सम्मानित किया गया। 

2-1929 में ‘सर’ की उपाधि प्रदान की गई।

3-1930 में उन्हें भौतिकी के क्षेत्र में विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

4-1954 में भारत-रत्न सम्मान मिला। 

5-इसके अलावा उन्हें अन्य अनेक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे-रोम का मेत्यूसी पदक, रॉयल सोसाइटी का ह्यूज़ पदक, फिलोडेल्फिया इंस्टीट्यूट का फ्रैंकलिन पदक तथा रूस का अंतर्राष्ट्रीय लेनिन पुरस्कार आदि।

प्रश्न 5-रामन् को मिलने वाले पुरस्कारों ने भारतीय-चेतना को जाग्रत किया। ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर-रामन् को विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार ‘नोबल पुरस्कार’ तथा अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार उस समय मिले, जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था। अतः रामन् को मिलने वाले उन पुरस्कारों से अन्य भारतीयों का भी आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ा। उनमें भी विज्ञान के प्रति रुचि जाग्रत हुई। उन्हें भी लगने लगा कि जब गुलाम भारत का हममें से ही एक व्यक्ति इतनी ऊँचाई पर पहुँच सकता है, तो हमें भी उससे प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। इस प्रकार रामन् को मिलने वाले पुरस्कारों से हर भारतीय गौरवान्वित एवं प्रेरित हुआ। बहुत-से भारतीयों के मन में विज्ञान के क्षेत्र में कुछ नया करने की चेतना जागी।


(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1-रामन् के प्रारंभिक शोधकार्यों को आधुनिक हठयोग क्यों कहा गया है?

उत्तर-प्राचीन समय में की जाने वाली ‘हठयोग’ क्रिया एक ऐसी क्रिया थी, जिसमें साधक अपने शरीर को अनेक प्रकार से कष्ट देकर साधना करता था। रामन् के शोधकार्य को आधुनिक हठयोग इसलिए कहा गया है, क्योंकि रामन् भी अपने शरीर को कष्ट देकर शोधकार्य करते थे। वे पूरे दिन एक थकाऊ सरकारी नौकरी करते, उसके बाद सीधे कलकत्ता (कोलकाता) की एक छोटी-सी प्रयोगशाला में जाते। उस प्रयोगशाला में प्रयोग हेतु साधनों का नितांत अभाव था, फिर भी रामन् अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर इन्हीं काम चलाऊ उपकरणों से शोधकार्य करते थे। 

प्रश्न 2-रामन् की खोज ‘रामन् प्रभाव’ क्या है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-रामन् ने अनेक ठोस रवों और तरल पदार्थों पर प्रकाश की किरण के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि जब एकवर्णीय प्रकाश की किरण किसी तरल या ठोस रवेदार पदार्थ से गुज़रती है तो गुजरने के बाद उसके वर्ण में परिवर्तन आता है। वजह यह होती है कि एकवर्णीय प्रकाश की किरण के फोटॉन जब तरल या ठोस रवे से गुजरते हुए इनके अणुओं से टकराते हैं तो इस टकराव के परिणामस्वरूप वे या तो ऊर्जा का कुछ अंश खो देते हैं या पा जाते हैं। दोनों ही स्थितियाँ प्रकाश के वर्ण (रंग) मेंक्षं बदलाव लाती हैं। एकवर्णीय प्रकाश तरल या ठोस रवों से गुजरते हुए जिस परिमाण में ऊर्जा खोता या पाता है, उसी हिसाब से उसका वर्ण परिवर्तित हो जाता है। एकवर्णीय प्रकाश की किरणों में बैंजनी रंग की किरणों में सर्वाधिक ऊर्जा होती है, इसलिए इसके रंग में भी सर्वाधिक अंतर आता है। लाल रंग में न्यूनतम ऊर्जा होती है, इसलिए इसमें न्यूनतम परिवर्तन होता है। इस ‘रामन् प्रभाव’ के द्वारा अनेक प्रकार के अध्ययन सहज हो पाए। 

प्रश्न 3-‘रामन् प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में कौन-कौन से कार्य संभव हो सके?

उत्तर-‘रामन् प्रभाव’ की खोज से विज्ञान के क्षेत्र में अनेकानेक कार्य संभव हो सके, जिनमें मुख्य हैं-

1-पदार्थों की आणविक और परमाणविक संरचना के सटीक अध्ययन के लिए ‘रामन् स्पेक्ट्रोस्कोपी’ का सहारा लिया जाने लगा। इससे पहले ‘इंफ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी’ का सहारा लिया जाता था, जिसमें गलतियों की संभावना अधिक रहती थी। 

2-प्रयोगशाला में पदार्थों का संश्लेषण सरल हो गया।

3-अनेक उपयोगी पदार्थों का कृत्रिम रूप से निर्माण संभव हो गया।

प्रश्न 4-देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् ने देश को वैज्ञानिक दृष्टि तथा चिंतन प्रदान किया। उन्होंने विज्ञान की चेतना फैलाने के लिए बंगलौर में एक उन्नत प्रयोगशाला और शोध संस्थान की स्थापना की, जो ‘रामन् रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के नाम से जानी जाती है। उन्होंने भौतिक शास्त्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए ‘इंडियन जरनल ऑफ फिजिक्स’ नामक शोध पत्रिका प्रारंभ की। विज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए ‘करेंट साइंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। उन्होंने अनेक नवयुवकों का मार्गदर्शन किया। आगे चलकर उनके शोध छात्रों ने विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया। इस प्रकार रामन् ने देश को वैज्ञानिक दृष्टि और चिंतन प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 5-सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् के जीवन से प्राप्त होने वाले संदेश को अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-रामन् वैज्ञानिक चेतना और दृष्टि की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने समुद्र के नीले रंग की खोज द्वारा यह संदेश दिया कि हमारे आस-पास अभी भी अनेक ऐसी चीज़ें बिखरी पड़ी हैं, जिन पर अभी तक शोध नहीं हुआ है। अतः हमें विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं की छानबीन एक वैज्ञानिक की दृष्टि से करनी चाहिए, जिससे कि उनके भीतर छिपे रहस्यों को दुनिया के सामने लाया जा सके। इसके साथ ही उन्होंने सादगीयुक्त जीवन जीने, लगन-आत्मविश्वास-देशभक्ति को अपनाने, धन से अधिक सरस्वती की साधना को महत्त्व देने, संस्कृति को न छोड़ने तथा अपने सपनों को साकार करने के लिए कठिन परिश्रम करने का संदेश भी दिया।


(ग) निम्नलिखित का आशय स्ष्ट कीजिए-

प्रश्न 1-उनके लिए सरस्वती की साधना सरकारी सुख-सुविधाओं से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

आशय-यह पंक्ति ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चंद्रशेखर वेंकटरामन्’ नामक पाठ से ली गई है।

यह पंक्ति उस घटना से जुड़ी है, जब रामन् के सामने विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद का प्रस्ताव आया। रामन् पहले से ही एक अच्छी सरकारी नौकरी में ऊँचे पद पर कार्यरत थे। जबकि प्रोफेसर के पद पर उन्हें पहले वाली नौकरी से कम वेतन तथा कम सुविधाएँ मिल रही थीं। पर चंद्रशेखर वेंकट रामन् तो सरस्वती के सच्चे भक्त थे, उनके लिए धन एवं पद से अधिक महत्त्वपूर्ण था-पढ़ना, पढ़ाना तथा शोध कार्य करना। अतः उन्होंने वित्त विभाग की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर कलकत्ता विश्वविद्यालय की कम सुविधा वाली नौकरी स्वीकार कर ली।

प्रश्न 2-हमारे पास ऐसी न जाने कितनी ही चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने पात्र की तलाश में हैं।

आशय-यह पंक्ति ‘वैज्ञानिक चेतना के वाहक: चंद्रशेखर वेंकटरामन्’ नामक पाठ से ली गई है। यहाँ लेखक हमारे अंदर वैज्ञानिक चेतना विकसित करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि जिस प्रकार न्यूटन ने सेब के नीचे गिरने का रहस्य खोजा, रामन् ने समुद्र का रंग नीला होने का कारण खोजा, उसी प्रकार आज भी हमारे आस-पास अनेक ऐसी चीजें बिखरी पड़ी हैं, जो अपने भीतर बहुत-से वैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए हैं। और वे प्राकृतिक चीज़ें चाहती हैं कि कोई उन भी ध्यान दे और उनके भीतर छिपे रहस्यों को खोजकर दुनिया के सामने लाए। 

प्रश्न 3-यह अपने आपमें एक आधुनिक हठयोग का उदाहरण था।

आशय-प्राचीन समय में साधक ईश्वर को पाने  के लिए या अपनी किसी इच्छा की पूर्ति के लिए बिना साधनों के बलपूर्वक, इच्छापूर्वक अनेक प्रकार की साधना में रत रहते थे। अपने शरीर को कष्ट देकर की गई यह साधना हठयोग कहलाती है। सर चंद्रशेखर वेंकट रामन् भी आधुनिक समय के हठयोगी ही थे, क्योंकि उन्होंने भी अनेक कष्ट सहकर इतनी ऊँचाई प्राप्त की थी। वे दिन भर की थकाऊ सरकारी नौकरी करने के बाद एक ऐसी प्रयोगशाला में पहुँचते, जिसमें मात्र कामचलाऊ उपकरण ही थे। पर साधन तथा समय का अभाव होने पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने शोधकार्यों में लगे रहे। अतः उनका इस तरह का कार्य वास्तव में ‘हठयोग’ ही कहलाएगा। 

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