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Sapno ke se din (Questions & Answers)

सपनों के से दिन 

प्रश्नोत्तर


प्रश्न 7. अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति 'बहादुर' बनने की कल्पना किया करता था?
उत्तर:-
लेखक के स्कूल में नया सत्र प्रारंभ होता, तब एक डेढ़ महीने की पढ़ाई के बाद गर्मियों की छुट्टियां हो जाती थीं। उन छुट्टियों में करने के लिए जो गृहकार्य मिलता, लेखक उसे पूरा करने के लिए मन-ही-मन एक समय सारणी या योजना तैयार करता। जैसे, वह सोचता कि प्रतिदिन गणित के बीस सवाल हल कर लूंँगा। लेकिन खेल-कूद में समय कब बीत जाता, लेखक को पता ही न चलता। लगता, जैसे दिन छोटे हो गए हों और सूरज दोपहर में ही जाकर छिप गया हो।

धीरे-धीरे छुट्टियाँ समाप्त होने लगतीं और स्कूल का कार्य न हो पाता, तो उस समय लेखक 'ओमा' की तरह बहादुर बनने की कल्पना किया करता। ओमा का कद ठिगना था, सिर हांडी जितना बड़ा था। उसके बंदरिया जैसे मुख पर नारियल की तरह गोल-गोल आंखें थीं। और वह स्कूल का काम करने की बजाए अध्यापकों से पिटना 'सस्ता सौदा' समझता था। लेखक भी ऐसा ही सोचने लगता।

प्रश्न 8.
पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:-
पाठ के आधार पर पीटी सर मास्टर प्रीतमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. बाह्य व्यक्तित्व-
पीटी सर अर्थात् प्रीतमचंद ठिगने कद के थे, उनका शरीर दुबला-पतला पर गठीला था। उनका चेहरा चेचक के दागों से भरा था। उनकी आँखें बाज की तरह तेज़ थीं। वे खाकी वर्दी, चमड़े के पंजों वाले बूट पहनते थे। उनके बूटों की ऊँची एड़ियों के नीचे खुरियाँ लगी रहती थीं। बूटों के अगले हिस्से में पंजों के नीचे मोटी सिरों वाले कील ठुके रहते थे। देखने में उनका व्यक्तित्व बड़ा डरावना प्रतीत होता था।

2. अनुशासन प्रिय-
प्रीतमचंद अनुशासन प्रिय थे। अतः वे छात्रों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कठोर दंड दिया करते। यदि किसी ने थोड़ी-सी भी अनुशासनहीनता की, तो वे उस पर बाघ की तरह झपट पड़ते और 'खाल खींचने' के मुहावरे को प्रत्यक्ष कर डालते।

3-कुशल अध्यापक-
प्रीतमचंद एक कुशल अध्यापक थे। वे चौथी श्रेणी के बच्चों को फ़ारसी पढ़ाया करते थे। वे मौखिक अभिव्यक्ति एवं याद करने पर बल दिया करते थे। 

4-कुशल प्रशिक्षक-
वे कुशल प्रशिक्षक थे। वे छात्रों को स्काउट और गाइड की ट्रेनिंग दिया करते थे। छात्रों द्वारा अनुशासन में रहकर सही कार्य करने पर वे उन्हें शाबाशी भी देते थे।

5-कोमलता एवं कठोरता का संगम-
मास्टर प्रीतम जहाँ अनुशासन को लेकर अत्यंत सख्त थे, वहीं वे हृदय से अत्यंत कोमल थे। उन्होंने अपने घर में दो तोते पाल रखे थे, वे उनसे बड़े ही प्रेम-से बातें किया करते और उन्हें दिन-भर भीगे हुए बादाम की गिरियाँ भी खिलाया करते थे।

6-मस्तमौला व्यक्तित्व-
मास्टर प्रीतम चंद मस्त रहने वाले व्यक्ति थे। इसी कारण उन्हें नौकरी से निकाले जाने का भी कोई दुख नहीं था। वे तो अपने चौबारे में अपने तोतों के साथ निश्चिंत जीवन गुजार रहे थे।

प्रश्न 9.
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर-
विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियाँ इस प्रकार हैं—
बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए पीटी साहब बिल्ला मार-मारकर बच्चों की चमड़ी तक उधेड़ देते थे। ज़रा भी अनुशासन भंग करने पर वे तीसरी-चौथी कक्षाओं के बच्चों को भी कड़ी सजा देते। उन्हें मुर्गा बनाकर पीठ ऊँची रखने को कहते। लेकिन यदि कोई बच्चा उनके अनुसार कार्य किया करता, तो वे उसे प्रोत्साहित तथा उत्साहित करने के लिए ‘शाबाशी’ भी देते थे। लेकिन ऐसा बहुत ही कम हुआ करता।
वर्तमान में स्वीकृत मान्यताएँ इसके विपरीत हैं। आज शिक्षकों को विद्यार्थियों को पीटने की स्वतंत्रता नहीं है। आज बच्चों की चमड़ी उधेड़ने वाली पिटाई तो दूर की बात है, उन्हें डाँटने-डपटने का भी अधिकार अध्यापकों को नहीं है। आज छात्र-छात्राओं को प्यार से, काउंसलिंग करके तथा उनके अभिभावकों से बात करके अनुशासन में लाने का प्रयास किया जाता है। 

प्रश्न 10.
बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।
उत्तर-
छात्र-छात्राएँ स्वयं करेंगे।


प्रश्न 11.
प्रायः अभिभावक बच्चों को खेलकूद में ज्यादा रुचि लेने पर रोकते हैं और समय बरबाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए-

(क) खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?
(ख) आप कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे, जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?
उत्तर-
(क). खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेलों से बच्चे का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। खेल बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। खेलों से बच्चों में सामूहिक रूप से काम करने तथा आपसी सहयोग की भावना का संचार होता है। बच्चों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तथा आगे बढ़ने की होड़ उत्पन्न होती है। रक्त संचार बढ़ता है। तन और मन नीरोग होते हैं।

(ख). मेरे अभिभावक मेरे खेलने पर आपत्ति न करें, इसके लिए मैं कुछ नियम-कायदों को अपनाना चाहूँगी। जैसे - समय सारिणी (टाइम टेबल) के अनुसार खेलने जाऊँगी। खेलने के साथ - साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूँगी। ऐसे खेल नहीं खेलूँगी, जिनमें मुझे या मेरे कारण किसी अन्य को चोट लगने का भय हो। बल्कि ऐसे खेल खेलूँगी, जिनमें मेरे माता-पिता को अनावश्यक धन न खर्च करना पड़े। खेल को खेल की भावना से खेलूँगी, लड़ाई - झगड़े या ईर्ष्या की भावना से नहीं। मुझे लगता है, इन सब बातों का ध्यान रखने से मेरे अभिभावकों को मेरे खेलने पर कोई आपत्ति न होगी।



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