कल्लू कुम्हार की उनाकोटी
प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1-‘उनाकोटी’ का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाएँ कि यह स्थान इस नाम से क्यों प्रसिद्ध है?
‘उनाकोटी’ का अर्थ है एक कोटि अर्थात् एक करोड़ से एक कम। यह माना जाता है कि इस स्थान पर शिव की एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ हैं। अतः एक करोड़ से एक कम मूर्ति होने के कारण यह स्थान उनाकोटी नाम से प्रसिद्ध हो गया। इसे लेखक ने भारत के सबसे बड़े शैव तीर्थों में से एक माना है।
प्रश्न 2-पाठ के संदर्भ में उनाकोटी में स्थित गंगावतरण की कथा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-उनाकोटी में पहाड़ों को अंदर से काटकर विशाल आधार मूर्तियाँ बनाई गई हैं। यहाँ विशाल चट्टानों पर उस पौराणिक कथा को चित्रित किया गया है, जब ऋषि भगीरथ की प्रार्थना पर गंगा स्वर्ग से निकलकर पृथ्वी पर आने को तैयार हो गई थीं। गंगावतरण (गंगा के पृथ्वी पर उतरने) के धक्के से कहीं पृथ्वी धँसकर पाताल लोक में न चली जाए, इस कारण भगवान शिव को इसके लिए तैयार किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लें और इसके बाद इसे धीरे-धीरे पृथ्वी पर बहने दें। इसी कथा को यहाँ पत्थरों पर दर्शाया गया है। एक पूरी चट्टान पर भगवान शिव का चेहरा बना हुआ है और उनकी जटाएँ दो पहाड़ों की चोटियों पर फैली हुई हैं।
प्रश्न 3-कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से किस प्रकार जुड़ गया?
उत्तर-एक दंतकथा के अनुसार कल्लू नामक एक कुम्हार पार्वती जी का बहुत बड़ा भक्त था। वह शिव-पार्वती जी के साथ उनके निवास कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। परंतु भगवान शिव उसे अपने साथ नहीं लेना चाहते थे। पार्वती जी के ज़ोर देने पर शिव जी ने कल्लू के सामने यह शर्त रखी कि यदि वह एक रात में उनकी (शिव की) एक करोड़ मूर्तियाँ बना देगा, तो वह उसे अपने साथ कैलाश ले जाएँगे। अपनी धुन का पक्का कल्लू मूर्तियाँ बनाने में जुट गया। जब सुबह होने पर मूर्तियाँ गिनी गईं तो वे एक करोड़ से एक कम निकलीं। शिव जी तो वैसे ही कल्लू से पीछा छुड़ाना चाहते थे, अतः शिव जी ने इसी बात का बहाना बनाकर कल्लू कुम्हार को उसके द्वारा बनाई गई मूर्तियों के साथ उनाकोटी में छोड़ दिया और स्वयं माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत चले गए। तभी से कल्लू कुम्हार का नाम उनाकोटी से जुड़ गया।
प्रश्न 4-‘मेरी रीढ़ में एक झुरझरी-सी दौड़ गई’-लेखक के इस कथन के पीछे कौन-सी घटना जुड़ी है?
उत्तर-लेखक राष्ट्रीय राजमार्ग 44 से होते हुए 83 किलोमीटर आगे मनु नामक स्थान पर शूटिंग के लिए जा रहे थे। उन्हें बताया गया था कि आगे का रास्ता हिंसाग्रस्त क्षेत्र के अंतर्गत आता है। अतः उनका काफ़िला सी.आर.पी.एफ. की सुरक्षा में चल रहा था। लेखक हरियाली युक्त उस सुंदर दिखाई पड़ने वाले स्थान की शूटिंग में इतना व्यस्त था कि उस समय तक उसके पास डर के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं थी, पर जब लेखक को सुरक्षा प्रदान कर रहे एक सी.आर.पी.एफ. कर्मी ने साथ की निचली पहाड़ियों पर गलत इरादे से रखे दो पत्थरों की तरफ लेखक का ध्यान आकर्षित किया और बताया कि दो दिन पहले यहीं पर उनके एक जवान को विद्रोहियों ने मार डाला था। यह सुनकर लेखक भीतर तक काँप गए और डर के कारण उनकी रीढ़ में एक झुरझुरी सी दौड़ गई थी।
प्रश्न 5-त्रिपुरा ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण कैसे बना?
उत्तर-त्रिपुरा तीन तरफ़ से बांग्लादेश से घिरा है और अपने ही देश में मिज़ोरम और असम से इसकी सीमाएँ जुड़ी हैं। अतः यहाँ बांग्लादेश से अवैध तरीके से (बिना सरकारी अनुमति के) लोग आकर बस जाते हैं। साथ ही असम और पश्चिम बंगाल से भी लोगों का यहाँ आना लगा ही रहता है। इस कारण त्रिपुरा में अलग-अलग धर्माे को मानने वाले आकर बसे हुए हैं। यहाँ उन्नीस अनुसूचित जनजातियों और विश्व के चारों बड़े धर्मों का प्रतिनिधित्व पहले से ही मौजूद है। यहाँ पर 1930 के दशक में रंगून से लाई गई सुंदर बुद्ध प्रतिमा भी है। इस प्रकार यहाँ अनेक धर्मों के लोगों के आकर बसने से यह राज्य ‘बहुधार्मिक समाज’ का उदाहरण बन गया है।
प्रश्न 6-टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय किन दो प्रमुख हस्तियों से हुआ? समाज-कल्याण के कार्यों में उनका क्या योगदान था?
उत्तर-टीलियामुरा कस्बे में लेखक का परिचय निम्नलिखित दो प्रमुख हस्तियों से हुआ-
1-हेमंत कुमार जमातिया-
यह त्रिपुरा के प्रसिद्ध लोक गायक हैं। इन्हें 1996 में संगीत नाटक अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। यह त्रिपुरा की कबीलाई बोली ‘कोकबारोक’ में गाते हैं। अपनी युवावस्था में ये पीपुल्स लिबरेशन आर्गनाइजेशन के कार्यकर्ता थे, पर अब इन्होंने हथियारबंद संघर्ष का मार्ग छोड़ दिया था और चुनाव लड़ने के बाद जिला परिषद के सदस्य बन गए थे।
2-मंजु ऋषिदास-
मंजु ऋषिदास एक आकर्षक महिला थीं। इनका संबंध मोचियों के समुदाय से था। ये रेडियो कलाकार होने के साथ-साथ नगर पंचायत में अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व भी करती थीं। ये निरक्षर होने के बावज़ूद एक जागरूक महिला थीं और अपने वार्ड के लोगों की समस्याओं से पूर्णतः परिचित थीं। यह अपने वार्ड में नलों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करने तथा वार्ड की मुख्य गलियों में ईंटें बिछाने के लिए नगर पंचायत को राज़ी कर चुकी थीं।
प्रश्न 7-कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को क्या जानकारी दी?
उत्तर- कैलासशहर के जिलाधिकारी ने आलू की खेती के विषय में लेखक को जानकारी देत्े हुए बताया कि टी.पी.एस. (टरू पोटेटो सीड्स) की खेती को त्रिपुरा में, खासकर उत्तरी जिले में किस तरह से सफलता मिली है। आलू की बुआई के लिए आमतौर पर परंपरागत आलू के बीजों की ज़रूरत दो मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर पड़ती है। इसके मुकाबले टी.पी.एस की सिर्फ 100 ग्राम मात्रा ही एक हेक्टेयर की बुआई के लिए काफी होती है। त्रिपुरा से टी.पी.एस. को अब न सिर्फ असम, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश को ही भेजा जाता है, बल्कि अब बांग्लादेश, मलेशिया और विएतनाम में भी इसका निर्यात किया जा रहा है।
प्रश्न 8-त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों पर प्रकाश डालते हुए अपनी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योगों के विषय में बताइए?
उत्तर-त्रिपुरा के घरेलू उद्योगों में सबसे लोकप्रिय है-अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करना। अगरबत्तियों के लिए बाँस की पतली सींकें तैयार करके इन्हें अगरबत्तियाँ बनाने के लिए कर्नाटक और गुजरात भेजा जाता है। यहाँ मोची समुदाय के लोग जूते बनाने का कार्य भी करते हैं। कुछ लोग थाप वाले वाद्यों जैसे-तबला, ढोलक आदि के निर्माण तथा मरम्मत के कार्यों में विशेषज्ञ हैं।
हमारी जानकारी के कुछ अन्य घरेलू उद्योग इस प्रकार हैं-
1-अचार, पापड़, चिप्स आदि
2-जेम, जैली, मुरब्बे आदि बनाना
3-सिलाई-कढ़ाई-बुनाई करना
4-खाने के डिब्बे तैयार करना
5-मेंहदी लगाना व मेकअप करना
6-फूलों की मालाएँ बनाना
7-लकड़ी, बाँस आदि से पंखे, टोकरियाँ इत्यादि बनाना आदि
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