गिन्नी का सोना
प्रश्नोत्तर
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1.शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर-शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना दोनों एक दूसरे से अलग इसलिए होते हैं, क्योंकि जहाँ शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती, वहीं गिन्नी के सोने में थोड़ा-सा ताँबा मिलाया जाता है। मिलावट न होने के कारण शुद्ध सोना थोड़ा कोमल तथा कम चमकदार होता है, जबकि तांबा मिला होने के कारण गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से अधिक चमकदार तथा मजबूत होता है।
प्रश्न 2. 'प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट' किसे कहते हैं?
उत्तर-'प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट' का अर्थ है - आदर्शों में थोड़ी-सी व्यावहारिकता को मिलाना। वे लोग जो अपने आदर्शों में थोड़ी सी व्यावहारिकता को मिलाकर चलाते हैं, उन्हें लेखक ने प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहा है। ऐसे लोग गिन्नी का सोना के समान होते हैं। जैसे गिन्नी के सोने में थोड़ा सा तांबा मिलाकर उसे मजबूत बनाया जाता है, वैसे ही प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट अपने आदर्शों में थोड़ी-सी व्यावहारिकता को मिलाकर उन्हें मजबूत और चमकदार बनाते हैं। यहाँ लेखक ने गांधी जी को प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट की संज्ञा दी है क्योंकि वे अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को मिलाकर चलाते थे, जिससे लाखों लोग उनके अनुयायी बन गए थे।
प्रश्न 3.पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या हैं?
उत्तर-पाठ में लेखक ने शुद्ध आदर्शों की तुलना शुद्ध सोने से की है। जिस प्रकार शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती, उसी प्रकार शुद्ध आदर्श वे हैं, जिनमें गिन्नी के सोने की तरह कोई मिलावट नहीं की गई हो, जिनमें व्यावहारिकता को कोई स्थान न दिया गया हो।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1.शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर-शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से इसलिए की गई है क्योंकि शुद्ध सोना अधिक मूल्यवान होता है। उसी प्रकार जीवन में आदर्शवादिता का ही अधिक मूल्य है। लेकिन यह भी सत्य है कि शुद्ध सोना कमजोर तथा कम चमकदार होता है, इसलिए उससे आभूषण नहीं बनाए जा सकते हैं। अतः शुद्ध सोने को मजबूती प्रदान करने के लिए उसमें तांबा मिलाना अत्यंत आवश्यक है। ठीक उसी प्रकार आज समाज में शुद्ध आदर्श कमजोर पड़ते जा रहे हैं। यदि हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक लोगों द्वारा आदर्शों को अपनाया जाए, तो उनमें थोड़ी सी व्यवहारिकता को मिलाना आवश्यक हो जाता है।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-
प्रश्न 1. गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-लेखक ने यहाँ गांधीजी को प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट की संज्ञा दी है, क्योंकि गांधीजी व्यावहारिकता को पहचानते थे और उसकी कीमत जानते थे। इसलिए उन्होंने अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को मिलाकर उसे मजबूती प्रदान की। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि गांधीजी ने हमेशा आदर्शों को ही प्रमुखता दी, उनमें व्यावहारिकता को उतना ही मिलाया, जितना आभूषण बनाने के लिए शुद्ध सोने में तांबे को मिलाया जाता है। जब तांबे को शुद्ध सोने में मिलाया जाता है, तो तांबा भी सोने के भाव बिकता है। उसी प्रकार गांधी जी ने भी व्यावहारिकता को आदर्शवाद की ऊँचाई प्रदान करके उसे भी आदर्शों जितना मूल्यवान बना दिया।
गांधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। उन्हें पता था कि जनता को शुद्ध आदर्शों के बल पर अपनी ओर आकर्षित नहीं किया जा सकता, अतः उन्होंने आदर्शों को मजबूत करने के लिए उसमें थोड़ी सी व्यावहारिकता मिलाई और लोगों को अपने आंदोलनों से जोड़ने में सफल रहे। उनके हर आंदोलन को सफल बनाने के लिए भारतीय जनता ने अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया। यही वजह थी कि गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन, असहयोग आंदोलन व दांडी मार्च जैसे आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया तथा सत्य और अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्य समाज को दिए।
प्रश्न 2.आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-शाश्वत मूल्य का अर्थ है-सनातन मूल्य। अर्थात ऐसे जीवन मूल्य जो मानवता के साथ प्रारंभ हुए हैं और वर्तमान समय में भी उपयोगी हैं और आगे भी इसी तरह उनका महत्व बना रहेगा। ऐसे मूल्य हैं -सत्य, अहिंसा, बड़ों का आदर-सत्कार, गुरुओं पर श्रद्धा, मानवता, परोपकार, त्याग, एकता, शांति, देश-प्रेम, आध्यात्मिकता, भाईचारा आदि।
इन मूल्यों की वर्तमान समय में तो और भी अधिक आवश्यकता है। आज धन-संपत्ति के लिए भाई-भाई आपस में लड़ रहे हैं। इंसान का इंसान और इंसानियत पर से भरोसा उठ गया है। मानवता पर युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। कई देश युद्ध की विभीषिका से जूझ रहे हैं। चारों तरफ रिश्वतखोरी, कालाबाजारी, झूठ, फरेब का माहौल बना हुआ है। आज इंसान व्यावहारिकता को आदर्श से अधिक महत्व दे रहा है। जैसे भी हो, बस उसका स्वार्थ सिद्ध होना चाहिए, इसके लिए भले ही उसे कितना ही झूठ, फरेब से काम लेना पड़े। ऐसे समय में हमें इन मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है। क्योंकि आदर्श एवं जीवन मूल्यों के बिना न तो राष्ट्र का कल्याण हो सकता और न ही मानवता का। परिवार, समाज और देश का आदर्श ढांचा बना रहे, इसके लिए शांति, परोपकार, त्याग, एकता, भाईचारा आदि मानवीय मूल्यों की वर्तमान में भी आवश्यकता एवं उपयोगिता है।
प्रश्न 3.अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब-
(क) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
(ख) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर-इस प्रश्न का उत्तर विद्यार्थी अपने अनुभव के आधार पर स्वयं लिखें।
प्रश्न 4.शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-शुद्ध सोना आदर्शों का प्रतीक है और ताँबा व्यावहारिकता का प्रतीक है। यदि कोई आभूषण बनाते समय शुद्ध सोने में थोड़ा सा तांबा मिलाता है, तो तांबा भी सोने के भाव बिकता है। लेकिन यदि तांबा बहुत हो और उसमें थोड़ा-सा सोना मिलाया जाए, तो वह सोना भी तांबे के भाव यानी कि कम मूल्य में बिकता है। गांधी जी भी यह बात अच्छी तरह जानते थे, इसलिए उन्होंने आदर्शों को सबसे ऊपर रखा। उसमें व्यावहारिकता को उतना ही मिलाया, जितना आदर्शों को मजबूत बनाने के लिए आवश्यक था। इसलिए यह कहा जा सकता है कि गांधी जी ने व्यावहारिकता को भी आदर्श की ऊँचाई प्रदान की। उन्होंने कभी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने दिया, बल्कि उनमें व्यावहारिकता मिलाकर उसे भी आदर्शों जितना ऊँचा बना दिया। इसीलिए गांधीजी को लेखक ने 'प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहा है।
प्रश्न 5.‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर-‘गिरगिट’ पाठ में हमने देखा कि किस तरह रिश्वतखोरी, चाटुकारिता के नाम पर आदर्शों को पूरी तरह से पीछे धकेला गया। वहांँ हमने न्याय प्रणाली की धज्जियाँ उड़ती देखीं। हमने उस पाठ में देखा कि किस प्रकार आज समाज एवं न्याय व्यवस्था में व्यवहार कुशलता, चाटुकारिता, वाक् चातुर्य तथा जी हुजूरी का ही बोलबाला है।
वहीं 'गिन्नी का सोना' पाठ में हमने पढ़ा कि समाज, देश और मानवता के पास जो भी आदर्श रूपी शाश्वत मूल्य हैं, वे आदर्शवादी लोगों की ही देन हैं। व्यवहारवादी तो हमेशा लाभ-हानि की दृष्टि से ही हर कार्य करते हैं। अतः उन्होंने तो हमेशा समाज को नीचे गिराने का ही कार्य किया है। वहीं आदर्शवादी लोगों ने हमेशा समाज को उत्कृष्टता प्रदान की है। समाज को सही दिशा प्रदान करने के लिए जो भी जीवन मूल्य दिए गए हैं, वे आदर्शवादी लोगों ने ही दिए हैं। हमारे देश की नींव ही आदर्शवादिता पर टिकी हुई है। अतः निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि अपनी आत्मा, देश तथा समाज सभी के उत्थान एवं कल्याण के लिए जीवन में आदर्शवादिता का ही महत्व है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
प्रश्न 1.समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उतर-यह पंक्ति 'पतझड़ में टूटी पत्तियाँ' पाठ के अंतर्गत 'गिन्नी का सोना' शीर्षक से ली गई है। यहाँ लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि आज हमारे पास दया, करुणा, प्रेम, सहानुभूति, एकता, ममता, त्याग, अहिंसा, सत्य आदि शाश्वत मूल्यों की जो भी धरोहर है, वह आदर्शवादी लोगों की ही दी हुई है। व्यवहारवादी लोग तो अपना काम निकालने के लिए छल-कपट, झूठ-फरेब किसी से भी परहेज नहीं करते। अतः वे तो हमेशा समाज को नीचे गिराने का कार्य करते हैं। समाज को ऊपर उठाने का जिम्मा तो हमेशा से ही आदर्शवादी लोगों ने लिया है। उनकी बदौलत ही समाज में जीवन मूल्य जीवित हैं।
प्रश्न 2.जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उतर-यह पंक्तियाँ 'पतझड़ में टूटी पत्तियाँ' पाठ के अंतर्गत 'गिन्नी का सोना' शीर्षक से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक कहते हैं कि कई बार लोग अपने आदर्शों को मजबूती देने के लिए उसमें थोड़ी सी व्यावहारिकता मिला देते हैं। लेकिन जब इस व्यावहारिकता के कारण उनका कोई कार्य बन जाता है, तो उन्हें यह व्यावहारिकता अच्छी लगने लगती है। उन्हें लगता है कि हमारी व्यावहारिकता से ही हमारे कार्य बन रहे हैं। और जब अन्य लोग भी उनकी व्यावहारिकता की प्रशंसा करने लगते हैं, तो वे धीरे-धीरे व्यावहारिकता पर ही निर्भर होने लगते हैं। व्यावहारिकता उनके जीवन का आवश्यक अंग बन जाती है और धीरे-धीरे उनके आदर्श पीछे छूटने लगते हैं। कहने का अर्थ यह है कि उनके आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी हो जाती है और उनके जीवन में आदर्श महत्वहीन हो जाते हैं।
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