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Bade bhai sahab (questions & answers)बडे़ भाईसाहब (पाठ-1, गद्य भाग)


 

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1. कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?

उत्तर-हमारी दृष्टि में पाठ के कथा नायक लेखक यानी कहानी लिखने वाले छोटे भाई हैं। छोटे भाई की रुचि खेल-कूद में थी। उन्हें पढ़ने से अधिक पसंद था-मैदान की सुखद हरियाली, फुटबॉल एवं बॉलीबॉल खेलना, पतंगबाज़ी करना, गुल्ली-डंडा खेलना, कागज की तितलियाँ उड़ाना, चारदीवारी पर चढ़कर नीचे कूदना, कंकरियाँ उछालना तथा फाटक पर सवार होकर उसे मोटर-कार की तरह आगे-पीछे चलाना।

प्रश्न 2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?

उत्तर-छोटा भाई जब भी खेल-कूद में समय बरबाद करके आता, तो बड़े भाई उससे हमेशा एक ही सवाल पूछते थे-कहाँ थे? यह सवाल हमेशा एक ही लहज़े में पूछा जाता था। उसके बाद उनकी उपदेश-माला प्रारंभ हो जाती थी। 

प्रश्न 3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर-दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई को अपने ऊपर अभिमान हो गया। वह स्वच्छंद और घमंडी हो गया। उसे लगनेे लगा कि उसकी तकदीर बलवान है, अतः वह पढ़े या न पढ़े, वह पास हो ही जाएगा। वह बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा। अब वह अपना अधिक समय खेलकूद में लगाने लगा। बड़े भाई का पहले जैसा आतंक अब उसके ऊपर न रहा। 

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?

उत्तर-बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में पाँच साल बड़े थे। वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे। उनके और छोटे भाई के बीच तीन कक्षाओं का फासला (अंतर) था। 

प्रश्न 5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?

उत्तर-बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए अपनी काॅपियों व किताब के हाशियों पर चिड़ियों तथा कुत्तों-बिल्लियों के चित्र बनाया करते थे। कभी-कभी वे एक शब्द या वाक्य को अनेक बार लिख डालते, कभी किसी एक शेर-शायरी की दस-बीस बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। वे ऐसी-ऐसी शब्द रचना करते, जिसका न कोई अर्थ होता न आपस में कोई सामंजस्य होता।  

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?

उत्तर-छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का एक जान-लेवा टाइम-टेबिल बनाया। इस टाइम-टेबिल में प्रत्येक विषय को पढ़ने के लिए समय निर्धारित किया गया। जैसे, सुबह उठकर स्कूल जाने से पहले पढ़ाई, स्कूल से आकर पढ़ाई तथा शाम को आधा घंटा टहलने के बाद फिर पढ़ाई। परंतु इसमें खेलकूद के लिए कोई स्थान नहीं रखा। 

उसने टाइम-टेबिल बना तो लिया, परंतु पहले दिन से ही उसका पालन न कर पाया। कारण यह था कि वह जैसे ही पढ़ने बैठता, वैसे ही मैदान की सुखद हरियाली, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की तेजी और फुरती, कबड्डी के दाँव-घात उसे अपनी ओर खींचते और वह टाइम-टेबिल को भूलकर खेलने भाग जाता। 

प्रश्न 2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर-जब एक दिन छोटा भाई शाम का सारा समय गुल्ली-डंडा की भेंट करके बड़े भाईसाहब के सामने पहुँचा तो बड़े भाई ने गुस्से में उसे खूब लताड़ा। प्रेम और क्रोध भरे शब्दों में उसका सत्कार व तिरस्कार किया। उसे रावण, शैतान, शाहेरूम आदि पात्रों का उदाहरण देकर घमंड न करने की सलाह दी तथा आगे की कक्षा की कठिन पढ़ाई का भय दिखाया। उन्होंने यह भी कहा कि रटकर परीक्षा पास करना बड़ी बात नहीं है, बल्कि जो कुछ पढ़ो, उसका अभिप्राय (अर्थ) भी समझना चाहिए।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?

उत्तर-बड़े भाई साहब छोटे भाई के सामने अपनी आदर्श स्थिति बनाए रखना चाहते थे। वे बड़े होने के नाते यही चाहते और कोशिश करते थे कि वे जो कुछ भी करें, वह छोटे भाई के लिए एक उदाहरण का काम करे। उन्हें लगता था कि यदि वे ही कुछ गलत करेंगे, तो छोटे भाई को डाँटने और समझाने का उन्हें कोई हक नहीं रह जाएगा। अतः वे चाहते थे कि वह स्वयं अनुशासित रहें, जिससे छोटे भाई को भी अनुशासन में रहने की प्रेरणा प्राप्त हो। इसी आदर्श स्थिति को बनाए रखने के लिए उन्हें अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं और वे अपनी उम्र के बच्चों की तरह न तो मेले-तमाशे में जाते थे और न ही खेलते-कूदते थे। वे नहीं चाहते थे कि उनके रहते हुए छोटा भाई किसी भी तरह के गलत मार्ग पर जाए।

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ?

उत्तर-बड़े भाई साहब छोटे भाई को दिन-रात पढ़ने, खेल-कूद में समय न गँवाने के साथ-साथ घमंड न करने की भी सलाह देते थे। वे कहते थे कि आदमी भले ही कुछ भी कुकर्म करे, पर अपने ऊपर अभिमान (घमंड) न करे। अभिमान करने वाला दीन और दुनिया दोनों से चला जाता है। इसलिए वे चाहते थे कि रावण आदि के बारे में सिर्फ पढ़ना ही काफी नहीं है, बल्कि इनके चरित्र से सीख लेनी भी आवश्यक है। इसलिए वे छोटे भाई को सलाह देते थे कि जो कुछ पढ़ो, उसका अभिप्राय भी समझो। 

प्रश्न 5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फायदा उठाया?

उत्तर-जब बड़ा भाई नौंवी कक्षा में दो साल लगातार फेल हो गया और वहीं छोटा भाई कक्षा में अव्वल आया तो छोटे भाई (लेखक) को अपने ऊपर आत्मविश्वास एवं घमंड उत्पन्न हुआ। उसके मन में यह भावना जाग गई कि उसका भाग्य बलवान है, अतः वह पढ़े या न पढ़े, परीक्षा में पास अवश्य हो जाएगा। बड़े भाई के नरम व्यवहार से उसे लगा कि अब बड़े भाई को उसे कुछ कहने का हक नहीं है। इस विचार से उसकी स्वछंदता और अधिक बढ़ गई। अब भाईसाहब का पहले जैसा भय और आतंक उस पर नहीं रहा। अब उसका सारा समय पतंगबाजी एवं खेल-कूद में व्यतीत होने लगा। 


(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।

उत्तर-हमारे विचार से छोटे भाई को अगर बड़े भाई की डाँट-फटकार न मिलती, तो वह कक्षा में पास भले ही हो जाता, परंतु अव्वल कभी भी नहीं आ पाता। भले हीे बड़े भाई की नसीहत तथा लताड़ से उसके खेल-कूद में कभी कोई कमी नहीं आई, परंतु इस डाँट-फटकार का असर अप्रत्यक्ष रूप से उस पर अवश्य पड़ा, इसीलिए उसने पढ़ाई का टाइम-टेबिल भी बनाया तथा वह अपना प्रतिदिन का टाॅस्क पूरा कर लेता था। उसे यह डर बना रहता था कि कक्षा में सबके सामने अपमानित न होना पड़े। अतः छोटे भाई के कक्षा में अव्वल आने के पीछे बड़े भाई की डाँट-फटकार की अहम भूमिका रही। 

प्रश्न 2. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?

उत्तर-इस पाठ में लेखक ने बड़े भाईसाहब के माध्यम से रटंत शिक्षा प्रणाली पर व्यंग्य किया है। उनका कहना है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारी समझ को नहीं बढ़ाती, बल्कि रट-रटाकर परीक्षा पास करने पर बल देती है। उन्होंने अध्यापकों एवं परीक्षकों पर भी व्यंग्य किया है। उनके अनुसार न तो अध्यापक सही तरह से प्रश्न-पत्र बनाते हैं और न परीक्षक काॅपी जाँचते समय अपनी सोच को विकसित करते हैं। बल्कि वे चाहते हैं कि बच्चा उनके लिखाए एक-एक शब्द को चाट डाले और बिल्कुल वैसा ही लिखे। इसके साथ ही बड़े भाई ने पाठ्यक्रम (सिलेबस) पर भी व्यंग्य करते हुए कहा है कि हमें बहुत-सी ऐसी चीज़ें पढ़नी पड़ती हैं, जो हमारे जीवन में कभी कोई काम नहीं आतीं।  

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

उत्तर-बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती, बल्कि अनुभव से आती है। जिसने जितनी दुनिया देखी है, उसे उतना ही अनुभव होगा। उनके अनुसार पुस्तकीय ज्ञान या रटंत विद्या से हम अगली कक्षा में प्रवेश तो पा लेते हैं, परंतु इससे जीवन जीने की समझ विकसित नहीं होती। जीवन की समझ को पाने के लिए दुनिया को देखना-परखना तथा अनुभव रूपी ज्ञान को प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि जीवन में किसी भी समस्या एवं विपरीत परिस्थिति के उत्पन्न होने पर अनुभव ही काम में आते हैं, न कि किताबी ज्ञान। 

प्रश्न 4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर-पहले तो छोटे भाई को बड़े भाई की डाँट-फटकार, उनकी सलाह तथा उपदेश पसंद नहीं आते थे। परंतु एक दिन जब बड़े भाई ने छोटे भाई को पतंग लूटने के लिए उसके पीछे भागते देखा तो उसे बहुत फटकारा और कहा कि मैं मेले-तमाशों में इसलिए नहीं जाता, जिससे तुम भी इन चीज़ों से दूर रहो। मेरे रहते यदि तुम गलत मार्ग पर गए तो मैं तुम्हें सही राह पर लाने के लिए थप्पड़ का प्रयोग भी कर सकता हूँ। मैं उम्र में तुमसे बड़ा हूँ, इसलिए मुझे जीवन का अनुभव तुमसे ज़्यादा है। बड़े होने के नाते मुझे तुम्हें सुधारने व समझाने का जन्मसिद्ध अधिकार है। 

जब छोटे भाई ने बड़े भाई की सूझ-बूझ भरी बातें सुनीं और उनके डाँटने के पीछे छिपी अपनी भलाई देखी, तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और उसके मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। 

प्रश्न 5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए।

उत्तर-बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1-बड़े भाईसाहब उपदेश देने की कला में बड़े ही कुशल थे। वे छोटी - छोटी बातों पर लंबे - चौड़े उपदेश दे डालते थे।

2-बड़े भाईसाहब रटंत शिक्षा प्रणाली के घोर विरोधी थे। उनके अनुसार यह प्रणाली महज़ रट्टा मारकर पास होने पर बल देती है, न का बुद्धि के विकास पर।

3-बड़े भाईसाहब छोटे भाई के सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहते थे, इसलिए वे हर समय पढ़ते रहते और मेले-तमाशे तथा खेल-कूद से दूर रहते। 

4-वे छोटे भाई का भला चाहते थे, इसलिए उसे मन लगाकर पढ़ने तथा खेल-कूद से दूर रहने की सलाह देते थे।

5-छोटे भाई के सामने एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करने के चक्कर में वे अपने मन की इच्छाओं को दबाया करते थे।

6-बड़े भाईसाहब किताबी ज्ञान से अधिक महत्व अनुभवों से प्राप्त ज्ञान को दिया करते थे। उनके अनुसार अनुभवों से प्राप्त ज्ञान ही जीवन जीने का सलीका सिखाता है तथा मुसीबत में काम आता है।

7-बड़े भाईसाहब अत्यंत परिश्रमी थे। वे दिन-रात पढ़ाई में जुटे रहते थे। वे बार-बार फेल होने के बावजूद पढ़ाई में लीन रहते थे। वे पास होने से ज्यादा बल नींव मजबूत करने पर देते थे।

प्रश्न 6. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?

उत्तर-बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्त्वपूर्ण कहा है। उनके अनुसार किताबों में पढ़ी हुई बहुत-सी बातों का जीवन से कुछ लेना-देना नहीं होता। किताबी ज्ञान तो सिर्फ़ हमें रट्टा मारकर पास होना सिखाता है, अतः किताबी ज्ञान से जीवन जीने की समझ पैदा नहीं होती। जीवन जीने की समझ तो अनुभवों से आती है। जिसने जितना जीवन जिया है, उसकी समझ उतनी ही अधिक विकसित होगी। अर्थात जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे अनुभवों के साथ-साथ जीवन की समझ भी बढ़ती जाती है। इसके लिए उन्होंने अपने अनपढ़ माता-पिता तथा हेडमास्टर साहब की बूढ़ी माँ का उदाहरण देते हुए कहा है कि ये लोग भले ही निरक्षर हैं, पर इन्हें जीवन जीने का सलीका हमसे बेहतर आता है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज है बुद्धि का विकास।

आशय-    
यह पंक्ति बड़े भाई साहब छोटे भाई से कह रहे हैं। जब कक्षा में अच्छे अंकों से पास होने पर छोटे भाई को घमंड पैदा हो जाता है, तब बड़े भाई साहब उसे समझाते हुए कहते हैं कि मात्र इम्तिहान में पास हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि इम्तिहान तो रटकर भी पास किया जा सकता है। सिर्फ इम्तिहान पास करने भर से जीवन का अनुभव प्राप्त नहीं होता और बिना अनुभव के बुद्धि का विकास नहीं होता। मनुष्य के जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए अनुभव से प्राप्त ज्ञान काम आता है, न कि किताबी ज्ञान। अतः हमें चाहिए कि जो कुछ पढ़ें, उसका अर्थ भी समझें, जिससे हमारे भीतर जीवन जीने की समझ पैदा हो।

प्रश्न 2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।

आशय-
लेखक खेल-कूद, सैर-सपाटे और मटरगश्ती का बड़ा प्रेमी था। उसका बड़ा भाई इन सब बातों के लिए उसे खूब डाँटता-डपटता था। उसे घुड़कियाँ देता था, तिरस्कार करता था। परंतु फिर भी वह खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह खेलों पर जान छिड़कता था। जिस प्रकार विविध संकटों में फँसकर भी मनुष्य मोहमाया में बँधा रहता है, उसी प्रकार लेखक डाँट-फटकार सहकर भी खेल-कूद के आकर्षण से बँधा रहता था।

प्रश्न 3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने?

आशय-
यह पंक्ति बडे़ भाईसाहब के लिए कही गई है। बडे़ भाई एक ही कक्षा में दो-तीन साल लगा देते थे। उन्हें लगता था कि पढ़ी हुई चीज़ का अर्थ समझे बिना अगली कक्षा में जाने से कोई लाभ नहीं है। वे सोचते थे कि भले ही एक ही कक्षा में दो-तीन साल लग जाएँ, परंतु नींव मज़बूत होनी चाहिए। यदि नींव मज़बूत होगी, तभी शिक्षा रूपी भवन मज़बूत बनेगा। इसके लिए उन्होंने एक भवन का उदाहरण देते हुए कहा है कि जब हम किसी आलीशान मकान को बनाते हैं तो, उसकी नींव को बहुत मज़बूत रखते हैं, क्योंकि नींव मज़बूत होने पर ही मकान भी मज़बूत एवं टिकाऊ रहेगा। कहने का आशय है कि जिस प्रकार मकान की मजबूती उसकी नींव पर टिकी होती है, ठीक उसी प्रकार शिक्षा रूपी भवन भी तभी मज़बूत एवं टिकाऊ रहेगा, जब उसकी नींव मज़बूत रहेगी।

प्रश्न 4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर था, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।

आशय-
यह पंक्ति उस समय कही गई है जब छोटा भाई पतंग लूटने के लिए उसके पीछे बेतहाशा भागा चला जा रहा था। उस समय उसकी आँखें आकाश में उड़ने वाली पतंग की ओर थीं। यहाँ पतंग को एक आत्मा की तरह कहा गया है। जिस प्रकार एक आत्मा पुराने शरीर से निकलकर ऊपर आसमान में जाती है, फिर वहाँ से वापस नीचे आकर किसी नए शरीर में प्रवेश कर जाती है। ठीक उसी प्रकार वह पतंग भी कटने के बाद किसी नए हाथों में जाने के लिए धीरे-धीरे झूमती हुई वापस नीचे की ओर आ रही थी। यहाँ पर लेखक ने पतंग को आकाशगामी यात्री की संज्ञा दी है।


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