सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Article निंदक नियरे राखिए

 

निंदक नियरे राखिए

यह पंक्ति संत कवि कबीरदास जी के एक प्रसिद्ध दोहे की है। पूरा दोहा इस प्रकार है-

‘‘निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिनु पाणि साबण बिना, निरमल करै सुभाय।।’’

अर्थ-कबीर दास जी कहते हैं कि हमें हमारी निंदा करने वाले व्यक्ति से बैर नहीं पालना चाहिए, बल्कि उसे अपनी कुटिया में, अपने घर के आँगन में अर्थात् अपने समीप रखना चाहिए। निंदक व्यक्ति के कारण बिना पानी और बिना साबुन के हमारा स्वभाव निर्मल बन जाता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि कबीर ने ऐसी बात क्यों कह दी? भला जो व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा हो, उससे हमारा सुधार कैसे हो सकता है? तो मैं आपको बता दूँ कि कबीर दास जी महान समाज-सुधारक थे। उनकी हर एक साखी उनके अनुभव का आईना है। उनकी हर एक बात में गूढ़ अर्थ निहित है।

कबीर दास जी ने एकदम सही कहा है कि निंदक व्यक्ति बिना किसी खर्च के हमारा स्वभाव अच्छा बना देता है। सोचिए, हमें अपने तन की स्वच्छता के लिए साबुन एवं पानी आदि की आवश्यकता पड़ती है, जबकि मन को स्वच्छ करना इतना कठिन होता है, फिर भी उसे हम बिना किसी खर्च के अत्यंत सरलता से स्वच्छ कर सकते हैं। बस, इसके लिए हमें निंदक व्यक्ति को अपने समीप रखने की आवश्यकता है।

तो चलिए, हम जानते हैं कि निंदा करने वाला व्यक्ति हमारे स्वभाव को अच्छा बनाने में किस प्रकार सहायक होता है। देखिए, कई बार हम ऐसे मित्रों को अपना हितैषी समझ लेते हैं, जो हर समय हमारी हाँ में हाँ मिलाते हैं, जो हमारी बात को सर्वोपरि रखते हैं, उस समय जो मित्र हमारी बात में कोई

कमी निकालता है या हमारी बात में शंका प्रकट करता है तो हम उससे चिढ़ जाते हैं, नाराज़ हो जाते हैं और उसे अपना दुश्मन समझ बैठते हैं। पर उस समय हम यह भूल जाते हैं कि हो सकता है उसकी शंका बिलकुल सही हो और हमें अपनी बात पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो।

दरअसल होता ये है कि हममें से अधिकतर का ध्यान अपनी कमियों की ओर नहीं जाता या हम जान-बूझकर अपनी कमियों को नज़र-अंदाज़ करते रहते हैं। पर दूसरी ओर, जो निंदक व्यक्ति होता है, उसका सारा ध्यान दूसरों की कमियों पर ही टिका होता है। बस, उसकी यही विशेषता हमारे स्वभाव को अच्छा बनाने में अहम् भूमिका निभाती है। जब वह व्यक्ति हमारी कमियों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है तो हम समाज के सामने उपहास एवं अपमान से बचने के लिए उस कमी को सुधारने का प्रयत्न करते हैं और इस तरह से वह कमी या बुराई हमारे अंदर से नष्ट हो जाती है और हमारा चित्त स्वच्छ हो जाता है।

पहले के समय मे अनेक राजा-महाराजाओं के मंत्री या उनके राज-दरबारी कवि आदि इस ज़िम्मेदारी का निर्वहन करते थे। वे अपने राजा की किसी कमी को या उनके स्वभाव की दुर्बलता को अपने कथनों की चालाकी या अपनी कविता आदि के माध्यम से इंगित कर देते थे। इससे राजा को अपनी गलती का भी अहसास हो जाता था और उसे अपने चरित्र को सुधारने का भी अवसर प्राप्त हो जाता था। ऐसा ही एक किस्सा राजा जयसिंह के विषय में प्रचलित है। राजा जयसिंह विवाह के पश्चात् अपनी नववधू के प्यार में ही खोये रहते थे। उनका ध्यान प्रजा और उसकी समस्याओं से हटने लगा। भला किसकी मज़ाल थी जो राजा के गलत कार्य को गलत कहने की हिमाकत कर सके। चापलूस लोग भला अपने राजा से कुछ कहकर उसे क्यों नाराज़ करने लगे। उस समय राजा के राज-दरबारी कवि थे-बिहारी। तब उन्होंने अपना कवि धर्म निभाते हुए राजा के सामने यह दोहा पढ़ा-

‘‘नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही में बिन्ध्यो, आगे कौनु हवाल।’’

अर्थात् "अभी तो इस कली में न ही पराग है, न मधुर मधु है और न ही यह पूरी तरह विकसित है। फिर भी यह भँवरा (राजा) अभी कली (रानी) के मोह में ही इतना पागल हो रहा है और जब ये कली पुष्प बनेगी, तब पता नहीं क्या होगा?’’ राजा उनके कथन का आशय समझ गया और उसने अपना सारा ध्यान प्रजा की भलाई की ओर लगा दिया।

इस एक किस्से से ही आप समझ गए होंगे कि यदि बिहारी राजा जयसिंह के निंदक नहीं बनते तो राजा स्वयं तो बरबाद होता ही, क्योंकि उसकी इस कमी का उसके शत्रु राजा लाभ उठाने का प्रयत्न करते, पर साथ ही सारी प्रजा को भी उसकी इस कमज़ोरी का दंड भुगतना पड़ता। एक निंदक (बिहारी) ने राजा को उसकी चारित्रिक दुर्बलता से बचा लिया।


अतः आगे से जब भी कोई हमारी निंदा करता है तो हमें नाराज़ होने की बजाय ठंडे एवं शांत चित्त से उस कारण पर मनन करना चाहिए, जो हमारी निंदा का कारण बना है। यदि वास्तव में हमारे अंदर वह बुराई है तो हमें उसे अपने से दूर करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए। जब हम एक-एक करके अपनी कमज़ोरियों को, अपनी कमियों को, अपनी स्वभावगत दुर्बलताओं को अपने से दूर करते जाएँगे तो हमारा स्वभाव क्रमशः निर्मल होता जाएगा और हम सभ्य समाज की दृष्टि में श्रेष्ठ नागरिक कहलाएँगे। पर, इसके लिए ज़रूरत है हमें जयसिंह बनने की, क्योंकि यदि हम अपनी कमी को स्वीकारेंगे ही नहीं तो उसे सुधारेंगे कैसे? अतः सर्वप्रथम आवश्यकता इस बात की है कि हम निंदक द्वारा इंगित कमी को स्वीकारें और उसे अपने से दूर करने का भरसक प्रयास करें।

चित्र Shutterstock से साभार 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Important tips for Hindi board exams

हिंदी  परीक्षा में लाने हैं अच्छे अंक,  तो अपनाएँ ये बातें  यहाँ इस लेख में दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्र-छात्राओं के लिए परीक्षा-पूर्व की तैयारी से लेकर परीक्षा देने तक के बीच आने वाल प्रत्येक प्रश्नों एवं शंकाओं का संपूर्ण निवारण किया गया है। आइए, इन सलाह और टिप्स को अपनाएँ और बोर्ड की हिंदी परीक्षा में अच्छे अंक लाएँ। हिंदी परीक्षा से संबंधित प्रश्न, जो परीक्षार्थियों के मन में अकसर उठते हैं - हिंदी परीक्षा और हिंदी प्रश्न-पत्रों को लेकर परीक्षार्थियों के मन में अकसर कुछ प्रश्न उमड़ते रहते हैं, तो हम यहाँ उनके प्रश्नों का समाधान करने का प्रयत्न कर रहे हैं। यदि इन प्रश्नों के अलावा भी किसी अन्य प्रश्न का उत्तर जानने की इच्छा हो तो आप कमेंट बॉक्स में लिखकर पूछ सकते हैं। तो आइए, देखते हैं कि वे प्रश्न कौन-से हैं? प्रश्न 1-क्या पुनरावृति अभ्यास करते समय उत्तरों को लिखकर देखना आवश्यक है: जी हाँ, आपको चाहिए कि किसी भी अच्छे मॉडल पेपर या अभ्यास प्रश्न पत्र में से किन्हीं पाँच प्रश्नपत्रों को पूरा लिखकर हल करें, क्योंकि कई बार लिखने का अभ्यास कम होने से प्रश्न-पत्र छूटने की संभावना

Bade bhai sahab (questions & answers)बडे़ भाईसाहब (पाठ-1, गद्य भाग)

  मौखिक निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए- प्रश्न 1.  कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी? उत्तर-हमारी दृष्टि में पाठ के कथा नायक लेखक यानी कहानी लिखने वाले छोटे भाई हैं। छोटे भाई की रुचि खेल-कूद में थी। उन्हें पढ़ने से अधिक पसंद था-मैदान की सुखद हरियाली, फुटबॉल एवं बॉलीबॉल खेलना, पतंगबाज़ी करना, गुल्ली-डंडा खेलना, कागज की तितलियाँ उड़ाना, चारदीवारी पर चढ़कर नीचे कूदना, कंकरियाँ उछालना तथा फाटक पर सवार होकर उसे मोटर-कार की तरह आगे-पीछे चलाना। प्रश्न 2.  बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे? उत्तर-छोटा भाई जब भी खेल-कूद में समय बरबाद करके आता, तो बड़े भाई उससे हमेशा एक ही सवाल पूछते थे-कहाँ थे? यह सवाल हमेशा एक ही लहज़े में पूछा जाता था। उसके बाद उनकी उपदेश-माला प्रारंभ हो जाती थी।  प्रश्न 3.  दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया? उत्तर-दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई को अपने ऊपर अभिमान हो गया। वह स्वच्छंद और घमंडी हो गया। उसे लगनेे लगा कि उसकी तकदीर बलवान है, अतः वह पढ़े या न पढ़े, वह पास हो ही जाएगा। वह बड़े भाई की सहनशीलता का अ

हरिहर काका (संचयन) questions answers of Harihar Kaka

 हरिहर काका  प्रश्नोत्तर  प्रश्न 1-कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है इसके क्या कारण हैं? उत्तर-कथावाचक और हरिहर के बीच मधुर, आत्मीय और गहरे संबंध हैं। इसके कई कारण हैं-पहला हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे। दूसरा हरिहर काका ने कथावाचक को बहुत प्यार-दुलार दिया था। हरिहर काका उसे बचपन में अपने कंधे पर बिठाकर गाँव भर में घुमाया करते थे। हरिहर काका के कोई संतान नहीं थी, इसलिए वे कथावाचक को एक पिता की तरह प्यार और दुलार करते थे। जब लेखक बड़ा हुआ, तो उसकी पहली मित्रता हरिहर काका के साथ हुई थी। वे उससे कुछ नहीं छिपातेे थे। इन्हीं कारणों से उन दोनों के बीच उम्र का अंतर होते हुए भी गहरा आत्मीयपूर्ण संबंध था।  प्रश्न 2-हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगने लगे?  उत्तर-हरिहर काका एक निःसंतान व्यक्ति थे। उनके हिस्से में पंद्रह बीघे उपजाऊ ज़मीन थी। महंत और उनके भाई दोनों का उद्देश्य हरिहर काका की इसी उपजाऊ ज़मीन को अपने कब्जे में करना था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दोनों ने काका को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों में फँसाना शुरू कर दिया। काका के भाई भी उनकी देखभाल ज़मीन के लिए