तुम कब जाओगे अतिथि
(प्रश्नोत्तर)
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्दों में लिखिए-
प्रश्न 1-लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था?
उत्तर-लेखक अतिथि को भावभीनी विदाई देना चाहता था। वह चाहता था कि अतिथि दूसरे ही दिन जाने की कहे और वह उसे कुछ समय और रुकने की कहे, पर अतिथि न माने। और जब अतिथि जाए तो लेखक उसे स्टेशन तक छोड़ने जाए। परंतु अतिथि ने लेखक को यह सब करने का अवसर ही नहीं दिया।
प्रश्न 2-पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए-
(क) अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया।
उत्तर-यह पंक्ति लेखक ने उस समय कही है, जब अतिथि का उसके घर आगमन हुआ था। लेखक अतिथि को देख कर ही समझ गए थे कि अब उसके स्वागत सत्कार में मेरा बहुत-सा धन खर्च होने वाला है। इन खर्चों की वजह से लेखक का पूरा बजट बिगड़ने वाला था। यही सोचकर लेखक का हृदय काँप गया। इसलिए लेखक ने कहा है कि अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया अर्थात् लेखक अतिथि के कारण होने वाले अनावश्यक खर्चे को भीतर तक काँप गए।
(ख) अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
उत्तर-हमारी भारतीय संस्कृति में यह माना जाता है कि ‘अतिथि देवो भव’। अर्थात् अतिथि देवता के समान होता है। लेखक को भी प्रारंभ में अतिथि देवता के समान लगा था, परंतु जब तीसरे दिन अतिथि ने अपने कपड़े धोबी को देने की बात कही, तो लेखक समझ गए कि अभी अतिथि और दिन उनके घर टिकने वाला है। यही सोचकर अतिथि के प्रति उनकी धारणा बदल गई। उन्हें लगा कि अतिथि तब तक ही देवता कहलाता है, जब वह देवता की तरह दर्शन देकर तुरंत लौट जाता है। अन्यथा कुछ समय रुकने पर वह साधारण मनुष्य की तरह दिखाई पड़ता है और अधिक दिन रुकने पर तो वह राक्षस प्रतीत होने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे राक्षस अपने दुष्ट स्वभाव से लोगों को कष्ट पहुँचाता है, ठीक वैसे ही अतिथि भी अधिक दिन रुककर मेजबान के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न करता है।
(ग) लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें।
उत्तर-लेखक का कहना है कि हर व्यक्ति को दूसरों के घर रहना अच्छा लगता है, क्योंकि वहाँ वह अपनी सारी चिंताओं से मुक्त रहकर अपनी खातिरदारी करवाता रहता है। इसीलिए बड़े-बड़े विद्वानों ने अपने घर की महत्ता के गीत गाए हैं, जिससे लोग अपने घर का महत्त्व समझें और दूसरों के घर अधिक दिन नहीं रुकें। क्योंकि जब अतिथि किसी के घर अधिक दिनों तक टिक जाता है तो उसके ऊपर होने वाले अनावश्यक खर्चों के कारण मेजबान के घर में आपस में झगड़े होने लगते हैं उनके घर की मिठास समाप्त होने लगती है। इसलिए लेखक का कहना है कि अपने घर में रहकर ही जीवन का आनंद उठाना चाहिए न कि दूसरों के घर में रहकर उनकी शांति भंग करनी चाहिए।
(घ) मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी।
उत्तर-अतिथि पिछले चार दिनों से लेखक के घर ठहरा हुआ है। लेखक को लगता है कि कल पाँचवे दिन के सूर्य की किरणों के स्पर्श के साथ ही अतिथि को विदाई ले लेनी चाहिए। यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो फिर लेखक उसे और अधिक बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। उसकी सहनशक्ति समाप्त हो जाएगी और वह अतिथि को अपमानित करके घर से बाहर निकालने के लिए बाध्य हो जाएगा।
(ङ) एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते।
उत्तर-लेखक का कहना है कि अतिथि को देवता माना जाता है अर्थात् ‘अतिथि देवो भव।’ जब अतिथि को देवता माना जाता है तो उसे देवता वाले गुण भी अपने अंदर बनाए रखने चाहिए। और देवता का मुख्य गुण है कि वह मनुष्य के साथ अधिक देर तक नहीं रहता। अतः अतिथि को भी हम जैसे साधारण मनुष्यों के साथ अधिक देर तक नहीं रहना चाहिए, बल्कि दर्शन देकर देवता की तरह तुरंत लौट जाना चाहिए।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखिए-
प्रश्न 1-कौन सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-तीसरे दिन सुबह जब अतिथि ने लेखक से अपने कपड़े धोबी को देने की बात कही, तो यह लेखक पर अचानक पड़ने वाली चोट थी, क्योंकि वह समझ गया था कि अतिथि का अभी उसके घर से जाने का कोई इरादा नहीं है।
इस बात का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि अब उसे लगने लगा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होता, बल्कि वह एक साधारण इंसान होता है और अधिक दिन रुकने पर तो वह राक्षस की तरह कष्टदायक प्रतीत होने लगता है।
प्रश्न 2-‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना’-इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं? विस्तार से लिखिए।
उत्तर-‘संबंधों का संक्रमण के दौर से गुजरना’-इस पंक्ति का अर्थ है-संबंधों में परिवर्तन आना। अर्थात् संबंधों का एक स्थिति से दूसरी स्थिति में प्रवेश कर जाना। जब अतिथि लेखक के घर आया था तो उनके संबंधों में एक आत्मीयता एवं मधुरता थी। लेखक ने उसके सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी, परंतु जब अतिथि ने लेखक के घर से जाने का नाम ही नहीं लिया तो उनके संबंधों में कटुता आ गई। सौहार्द का स्थान गालियों ने ले लिया तथा घर में खिचड़ी बन गई और उपवास रखने की भी सोची जाने लगी।
प्रश्न 3-जब अतिथि चार दिन तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर-जब अतिथि चार दिनों तक नहीं गया तो लेखक के व्यवहार में अनेकानेक बदलाव आते गए। अब बातचीत के सारे विषय समाप्त हो गए। बातचीत का स्थान चुप्पी और बोरियत ने ले लिया। सौहार्द का स्थान गालियों ने ले लिया। खाने की शुरुआत उच्च मध्यम वर्ग के डिनर से हुई थी, परंतु अब खिचड़ी पर आ गए और अगले दिन उपवास रखने की भी सोची जाने लगी। लेखक ने मन-ही-मन यह भी निर्णय ले लिया कि यदि कल तक अतिथि उसके घर से नहीं गया, तो वह उसे ‘गेट आउट’ कहने पर मज़बूर हो जाएगा।
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