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Teesri Kasam Ke Shilpkar Shailendra (Questions & Answers)

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

प्रश्नोत्तर 


मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1-‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर-'तीसरी कसम' फ़िल्म को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे-इसे राष्ट्रपति स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। ‌‌‌‌बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार प्रदान किया गया तथा मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में इसे पुरस्कृत किया गया।

प्रश्न 2-शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?

उत्तर-शैलेंद्र ने अपने जीवन में केवल एक ही फ़िल्म बनाई, जो थी-'तीसरी कसम।' यह उनकी पहली व अंतिम फ़िल्म थी।

प्रश्न 3-राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।

उत्तर-राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फिल्मों के नाम इस प्रकार हैं -

‘मेरा नाम जोकर’, ‘अजन्ता’, ‘मैं और मेरा दोस्त’ तथा 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्’।

प्रश्न 4-‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?

उत्तर-‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक थे - राजकपूर, जिन्होंने फ़िल्म में हीरामन नामक गाड़ीवान का अभिनय किया था। फ़िल्म में नायिका थीं - वहीदा रहमान, जिन्होंने ‘हीराबाई’ नामक नौटंकी कलाकार का अभिनय किया था। 

प्रश्न 5-फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर-फिल्म 'तीसरी कसम' का निर्माण गीतकार शैलेन्द्र ने किया था।

प्रश्न 6-राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?

उत्तर-राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि इस फिल्म का एक ही भाग बनाने में छह वर्षों का समय लग जाएगा।

प्रश्न 7-राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?

उत्तर-जब शैलेन्द्र ने राजकपूर को ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म की कहानी सुनाई, तब राजकपूर ने फिल्म में काम करने के लिए अपना पारिश्रमिक एडवांस देने की बात कही। शैलेन्द्र को अपने मित्र राजकपूर से ऐसे व्यवहार की उम्मीद न थी। अतः पारिश्रमिक की बात सुनकर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया।

प्रश्न 8-फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?

उत्तर-फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को कला-मर्मज्ञ एवं आँखों से बात करनेवाला अभिनेता मानते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1-‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?

उत्तर-'सैल्यूलाइड' का अर्थ है-कैमरे की रील। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता इसलिए कहा गया है, क्योंकि इस फिल्म में हिंदी साहित्य की एक मार्मिक रचना को अत्यंत भावपूर्ण तरीके से कैमरे की रील या फ़िल्मी पर्दे पर उतारा गया है। जिस तरह कविता में भावों को प्रधानता दी जाती है, उसी तरह इस फिल्म को देखते समय भी ऐसा लगता है, जैसे हम फिल्मी पर्दे पर लिखी हुई कोई कविता पढ़ रहे हों।

प्रश्न 2-‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

उत्तर-खरीददार उस फिल्म को ही खरीदते हैं, जिसमें उन्हें लाभ होने की संभावना दिखाई दे। परंतु इस फिल्म में कोई फिल्मी मसाला नहीं डाला गया था। यह फिल्म एक साहित्यिक कृति पर बन रही थी तथा इसे बनाने वाला निर्माता-निर्देशक (शैलेन्द्र) भी नया था। अतः खरीददारों को लग रहा था कि यह फिल्म अधिक कमाई नहीं कर पाएगी। इसलिए वे इसे खरीदने को तैयार न थे।

प्रश्न 3-शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?

उत्तर-शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह उपभोक्ताओं की रुचियों को परिष्कार करे। कहने का तात्पर्य यह है कि अधिकांश निर्माता-निर्देशक भौंडापन और अश्लीलता को दिखाते हैं। पूछने पर कहते हैं कि आजकल दर्शक यही देखना चाहते हैं। पर शैलेंद्र चाहते थे कि कलाकार को दर्शकों की रुचि की आड़ लेकर उथलापन या भौंडापन उन पर नहीं थोपना चाहिए, बल्कि अच्छी चीजें दिखानी चाहिए, जिससे दर्शकों की रुचि भी अच्छी चीजें देखने के प्रति जाग्रत हो।

प्रश्न 4-फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?

उत्तर-'ग्लोरिफाई' का अर्थ है-किसी भी चीज़ को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना। फ़िल्मों में त्रासद या दुखद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई इसलिए किया जाता है, जिससे दर्शकों का भावनात्मक शोषण किया जा सके। कहने का तात्पर्य यह है कि फिल्म निर्माता दुखद बातों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाकर दर्शकों का भावनात्मक शोषण (इमोशनली ब्लैकमेल) करते हैं, जिससे उनकी फिल्म अधिक से अधिक लोग देखने आएँ।

प्रश्न 5-‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’- इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं-इसका आशय है कि राजकपूर जो कहना चाहते थे, उसे शैलेंद्र ने शब्दों के माध्यम से प्रकट किया है। राजकपूर मित्रता की कद्र करने वाले एक सरल व्यक्तित्व वाले इंसान थे। शैलेन्द्र ने उन्हें फिल्म में भी सरल हृदय और सच्चे मित्र के रूप में चित्रित किया है। 

प्रश्न 6-लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर-शोमैन का अर्थ है-ऐसा कलाकार, जिसकी प्रसिद्धि न सिर्फ अपने देश में, बल्कि अन्य देशों में भी फैली हो। जो अपनी कला से लाखों लोगों को अपना बना लेता हो। राजकपूर भी ऐसे ही लोकप्रिय कलाकार थे, जिनके चाहने वाले देश-विदेश, विशेषकर एशिया में लाखों की संख्या में थे। वे जब रूस में जाते थे, तो लोग उनके गानों पर झूम उठते थे। दर्शकों का ऐसा प्यार हर किसी कलाकार के प्रति दिखाई नहीं देता।

प्रश्न 7-फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

उत्तर-शैलेंद्र के लिखे गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की, क्योंकि उनका ख्याल था कि दर्शक चार दिशाएँ तो समझ सकते हैं, पर दस दिशाएँ नहीं। अतः जयकिशन इस पंक्ति को बदलवाना चाहते थे।


(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1-राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?

उत्तर-शैलेन्द्र एक भावुक कवि हृदय व्यक्ति थे। इतने सालों से फिल्म इंडस्ट्री में रहने के बाद भी वे धन और यश की कामना से दूर थे। उन्होंने तीसरी कसम फिल्म धन के लिए नहीं, बल्कि अपनी आत्म-संतुष्टि के लिए बनाई। इसलिए जब राजकपूर ने शैलेन्द्र को आगाह किया कि इस फिल्म में कोई फिल्मी मसाला नहीं डाला गया है, अतः इसके चलने की उम्मीद न के बराबर है, तब भी शैलेन्द्र ने कोई परवाह न करते हुए यह फिल्म बनाई।

प्रश्न 2-‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-राजकपूर एक महान कलाकार थे, वे आँखों से बात करने वाले कलाकार थे। वे चरित्र (कैरेक्टर) के हिसाब से खुद को उसमें ढाल लेते थे। इसलिए लेखक ने कहा भी है कि फिल्म में राजकपूर पर 'हीरामन' हावी हो गया है। पूरी फिल्म में कहीं से भी वे राजकपूर न लगकर एक सरल हृदय वाले देहाती गाड़ीवान लगे हैं। महान कलाकार होने के साथ ही राजकपूर एक महान इंसान भी थे। इसीलिए जब शैलेन्द्र ने उनसे अपनी फ़िल्म में काम करने को कहा, तो वे एकदम तैयार हो गए। शैलेन्द्र नए निर्माता थे। फिल्म के चलने की उम्मीद भी नहीं थी, पर फिर भी राजकपूर ने दोस्ती की खातिर बिना पैसे लिए इस फिल्म को करना स्वीकार कर लिया। इसीलिए लेखक ने राजकपूर के व्यक्तित्व को महिमामय बताया है। यही महान व्यक्तित्व फिल्म में भी उभर आया है। फिल्म में भी वे 'हीरामन' के रूप में दोस्ती को सबसे ऊपर रखते हैं। एक देहाती गाड़ीवान के रूप में नौटंकी की बाई में अपनापन खोजते हैं, हीराबाई की बोली और भोली सूरत पर रीझते हैं तथा हीराबाई की तनिक-सी उपेक्षा पर अपने अस्तित्व से जूझते हैं। राजकपूर ने हीरामन की भावनाओं को स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत किया है। वे कहीं भी अभिनय करते नहीं दिखते, अपितु ऐसा लगता है, जैसे वे ही हीरामन हों। अतः कहा जा सकता है कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में राजकपूर का पूरा व्यक्तित्व ही जैसे हीरामन की आत्मा में उतर गया है।

प्रश्न 3-लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फिल्म साहित्यिक कृति पर बनी हुई फिल्म है। यह फणीश्वरनाथ रेणु के सुप्रसिद्ध उपन्यास 'मारे गए गुलफाम' पर आधारित है। शैलेंद्र ने इस उपन्यास की छोटी-से-छोटी बारीकियों को फिल्म में ज्यों-का-त्यों उतारा है। उन्होंने फिल्म को चलाने के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया है। वे एक भावुक हृदय कवि थे। इसलिए उन्होंने यह फिल्म आत्म संतुष्टि के लिए बनाई, न कि प्रसिद्धि और पैसे के लिए। साहित्यिक कृति पर बनी हुई अधिकतर फिल्मों में उसे सफल बनाने के लिए फिल्मी मसाला डाल दिया जाता है, जिससे फिल्म भले ही सफल हो जाए, पर साहित्यिक कृति की मूल आत्मा नष्ट हो जाती है। इस फिल्म के लिए शैलेंद्र ने किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। शैलेंद्र ने मूल कथा को हू-ब-हू प्रस्तुत किया है। कहानी का एक छोटे-से-छोटा भाग, उसकी छोटी-से-छोटी बारीकियाँ फिल्म में पूरी तरह से दिखाई गई हैं। इन सभी कारणों से लेखक ने लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है।

प्रश्न 4-शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-शैलेन्द्र ने अपने गीतों में कभी भी झूठे रंग-ढंग या दिखावे को नहीं अपनाया। इसीलिए जब जयकिशन ने 'रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ' में 'दसों दिशाओं' की जगह 'चार दिशाएँ' करने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। उनका मानना था कि हमें दर्शकों को सही और अच्छी चीजें ही दिखानी चाहिए। उनके गीत भी उनके व्यक्तित्व की तरह ही भावों से युक्त थे। उनके गीतों की भाषा जितनी सरल थी, भावों में उतनी ही गहराई भी थी। ऊपर से देखने में उनके गीत शांत नदी के प्रवाह की तरह दिखाई देते थे, पर भावों के मामले में वे समुद्र की गहराई लिए हुए थे। 'मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंग्लिस्तानी, सर पे लाल टोपी रुसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’ - यह गीत शैलेंद्र ही लिख सकते थे, क्योंकि भाषा सरल होते हुए भी इसमें देशभक्ति के गहरे भाव समाहित हैं। उनके गीतों में जिस व्यथा (दुख) को दिखाया गया है, वह व्यक्ति को तोड़ती नहीं, बल्कि उससे जूझने का तथा आगे बढ़ने का संदेश देती है।

प्रश्न 5-फिल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली और आखिरी फिल्म थी। उनका मानना था कि फिल्म निर्माता को कोई भी उथली, अश्लील और फूहड़ चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। एक कलाकार होने के नाते उनका यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा बनाने की कोशिश करे। अर्थात कलाकारों को दर्शकों की आड़ लेकर अपनी चीजें उन पर नहीं थोपनी चाहिए। यदि हम अच्छी फिल्में बनाएँगे, तो दर्शक खुद-ब-खुद अच्छी ही चीजें देखेंगे। इससे उनकी रुचि भी परिष्कृत होगी। इसलिए शैलेंद्र ने मूल कहानी की आत्मा से छेड़छाड़ किए बिना इस फिल्म को बनाया। पहली फिल्म होने के बाद भी शैलेंद्र की कलात्मकता की बहुत तारीफ हुई। उन्होंने राज कपूर जैसे महान कलाकार से एकदम स्वाभाविक अभिनय करवाया है। उन्होंने उपन्यास के सभी पात्रों एवं उनकी भावनाओं को हु-ब-हू दर्शाया है। कहानी का एक छोटे-से-छोटा भाग, उसकी छोटी-से-छोटी बारीकियाँ फिल्म में पूरी तरह से दिखाई गई हैं। राज कपूर की भावनाओं को तो उन्होंने कहीं-कहीं बिना बोले सिर्फ आँखों से ही व्यक्त करवा दिया है। इन सब बातों के आधार पर हम कह सकते हैं कि शैलेंद्र ने भले ही एक फिल्म बनाई हो, लेकिन वह एक उत्कृष्ट फिल्म निर्माता थे।

प्रश्न 6 – शैलेन्द्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है-कैसे ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – शैलेन्द्र कई वर्षों से फिल्म इंडस्ट्री में थे, पर फिल्म नगरी की दिखावटी और मौकापरस्त संस्कृति को उन्होंने कभी नहीं अपनाया। वे सादगी युक्त तथा सीधा-सरल जीवन जीने वाले थे। वे अपनी निजी जिंदगी में भी पैसे और प्रसिद्धि को महत्व न देकर प्यार और मित्रता को महत्व देते थे और वही सब उन्होंने अपनी फिल्म में भी दिखाया। वे अपनी निजी जिंदगी में जोखिम उठाने को भी तैयार रहते थे, इसीलिए उन्होंने फिल्म के चलने की गुंजाइश न होने पर भी आत्म संतुष्टि के लिए यह फिल्म बनाई। ठीक उसी तरह वे अपनी फिल्म के गीतों में भी व्यक्ति को निराश न होकर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। सादगी, संघर्ष, कला के प्रति अभिरुचि, सच्ची मित्रता आदि जो बातें उनके जीवन में थीं, वे सब उनकी फिल्म में भी दिखाई देती हैं। इसलिए लेखक ने कहा है कि शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फिल्म में झलकती है।

प्रश्न 7 – लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहा तक सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –लेखक के इस कथन से हम पूरी तरह सहमत हैं।  शैलेंद्र ने अपने पूरे जीवन में एक यही फिल्म बनाई थी। यह फिल्म एक साहित्यिक रचना पर आधारित थी। ज्यादातर लोग पैसे के लालच में मूल रचना से छेड़छाड़ करते हैं और उसमें फिल्मी मसाला डालकर मुनाफा कमाते हैं, क्योंकि साहित्य कृति में बिना मसाला डाले उससे पैसा कमाना मुश्किल होता है। परंतु शैलेंद्र एक कवि हृदय व्यक्ति थे, इसलिए उन्होंने इस फिल्म की मूल रचना से बिना कोई छेड़छाड़ किए उसे ज्यों का त्यों फिल्मी पर्दे पर उतारा है। ऐसा करने के पीछे शैलेंद्र का उद्देश्य दर्शकों को अच्छी फिल्म दिखाना था, न कि उससे पैसा या प्रसिद्धि कमाना। इसीलिए इस फिल्म की कलात्मकता की लंबी-चौड़ी तारीफें भी हुईं। इस फिल्म के कलाकार, कहानी तथा गीत-सभी कुछ सादगी भरे, सरल, गहराई लिए हुए एवं भावों से युक्त थे। इसीलिए लेखक ने कहा है कि यह फिल्म कोई सच्चा कवि हृदय ही बना सकता था। 


(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

1 – ……वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार सम्पत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्म-संतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।

उत्तर –राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को पहले से ही फिल्म की असफलता के खतरों से आगाह करा दिया था, परंतु इसके बावजूद भी फिल्म के सफल होने की परवाह न करते हुए शैलेन्द्र ने 'तीसरी कसम' फिल्म का निर्माण किया। इसका कारण यह था कि वे दर्शकों को एक अच्छी साहित्य कृति से परिचित कराना चाहते थे। वे इस फिल्म के माध्यम से आत्म संतुष्टि करना चाहते थे। उन्हें न तो धन की इच्छा थी और न ही यश की। वे तो एक भावुक कवि थे, उनको तो बिना समझौता किए एक अच्छी फिल्म बनानी थी। उनका मानना था कि फिल्म भले ही ना चले, पर मुझे यह संतुष्टि रहेगी कि मैंने एक अच्छी फिल्म दर्शकों के लिए बनाई।

2 – उनका दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रूचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे।

उत्तर – अधिकतर यह देखने में आता है कि ज्यादातर निर्माता एवं निर्देशक अपनी फिल्मों में अश्लीलता एवं उथलापन दिखाते हैं और जब उनसे इस संबंध में पूछा जाता है, तो उनका उत्तर होता है कि दर्शक यही सब देखना चाहते हैं। परंतु निर्माता-निर्देशक एवं गीतकार शैलेंद्र की राय इनसे भिन्न थी। उनका कहना था कि हमें दर्शकों की आड़ लेकर अपने उथलेपन को उन पर थोपना नहीं चाहिए। और यदि दर्शक इस तरह की चीजें देखना भी चाहते हैं, तो हम कलाकारों का कर्तव्य है कि हम दर्शकों की रुचि को अच्छा बनाएँ। यदि हम दर्शकों को अच्छी चीजें दिखाएँगे, तो उनकी रुचि सुधरेगी और वे अच्छी चीजें देखने के लिए प्रेरित होंगे।

3 – व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश भी देती है।

उत्तर – यह पंक्ति 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र' पाठ से ली गई है। इसमें लेखक शैलेंद्र के गीतों की प्रशंसा करते हुए कह रहे हैं कि उनके गीतों में जो व्यथा या दुख दिखाया जाता था, वह आदमी को नकारात्मक नहीं बनाता था, उसे पराजित नहीं करता था, बल्कि मुसीबतों से जूझने की प्रेरणा देता था और उन मुसीबतों को पार करते हुए आगे बढ़ने का संदेश भी प्रदान करता था। साथ ही उन दुखों से जूझने की वो सारी क्रिया-प्रक्रिया भी मौजूद रहती थी, जिसका सहारा ले कर कोई भी व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुँच सकता है। 

4 – दरअसल इस फिल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने का गणित जानने वाले की समझ से परे थी।

उत्तर – जब ‘तीसरी कसम’ फिल्म बनकर तैयार हुई तो उसे पर्दे पर दिखाने के लिए खरीददार नहीं मिल रहे थे, क्योंकि उन लोगों को लगता था कि यह फिल्म दर्शकों को पसंद नहीं आएगी। इसका कारण यह था कि फिल्म में जो करुणा और भावों की गहराई दिखाई गई थी, वह उन लोगों की समझ से परे थी, जो लोग मुनाफा कमाने के लिए फिल्मों को खरीदते हैं। इस फिल्म में रची-बसी करुण को तराजू पर नहीं तोला जा सकता, बल्कि हृदय से अनुभव किया जा सकता है। लेकिन खरीददार तो लाभ-हानि का हिसाब लगाकर फिल्म खरीदते हैं, अतः उन्हें यह फिल्म खरीदना घाटे का सौदा लग रहा था।

5 – उनके गीत भाव-प्रणव थे-दुरूह नहीं।

उत्तर-यह पंक्ति 'तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेन्द्र' पाठ से ली गई है। लेखक ने शैलेन्द्र के गीतों की प्रशंसा करते हुए कहा है कि उन्होंने अपने गीतों में कभी भी झूठे रंग-ढंग या दिखावे को नहीं अपनाया। उनके गीतों की भाषा अत्यंत सरल थी। ऊपर से देखने पर वे शांत नदी के समान दिखाई देते थे, पर उनमें समुद्र जैसी गहराई वाले भाव छिपे रहते थे। अधिकतर कवि अपने गीतों या कविताओं में भावों की गहराई दिखाते हैं, तो उनके गीतों या कविताओं को समझना कठिन हो जाता है, लेकिन शैलेंद्र के गीतों में भावों की गहराई होने पर भी उसके बोल इतने सरल होते थे कि वे आसानी से याद हो जाते थे‌। इसलिए हम कह सकते हैं कि उनके गीत भावों से युक्त तो थे, परंतु दुरूह या कठिन नहीं।

  

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